मैं अकेला चल पड़ा हूँ
मंजिलों की डगर पर
फिसलकर,गिरकर फिर संभलकर
मंजिलें हैं नहीं आसान
पर नामुमकिन भी है नहीं
देखता हूँ आगे पीछे
दूर तक कोई नहीं
कर रहा कोशिश बहुत
पर चाहिए और भी धुन
ना तो कोई सारथी(कृष्ण) है
ना ही मैं अर्जुन
ये तो उनका प्यार है
और हूँ मैं उनकी छाँव में
कोई काँटा है नहीं
चुभ सकता मेरे पाँव में
चल पड़ा हूँ मैं अकेला
हूँ नहीं फिर भी अकेला
ये है मेरी वो हकीकत
जो मुझे देती नसीहत
ये कलम जो चल पड़ी है,
आज तेरे सामने
चलना इसको भी बहुत है,
मंजिलों को थामने
मंजिलों की डगर पर
फिसलकर,गिरकर फिर संभलकर
मंजिलें हैं नहीं आसान
पर नामुमकिन भी है नहीं
देखता हूँ आगे पीछे
दूर तक कोई नहीं
कर रहा कोशिश बहुत
पर चाहिए और भी धुन
ना तो कोई सारथी(कृष्ण) है
ना ही मैं अर्जुन
ये तो उनका प्यार है
और हूँ मैं उनकी छाँव में
कोई काँटा है नहीं
चुभ सकता मेरे पाँव में
चल पड़ा हूँ मैं अकेला
हूँ नहीं फिर भी अकेला
ये है मेरी वो हकीकत
जो मुझे देती नसीहत
ये कलम जो चल पड़ी है,
आज तेरे सामने
चलना इसको भी बहुत है,
मंजिलों को थामने
Written By : Ankit Jha